Tuesday, April 27, 2010

मोदी भयो 'महाठग' बाकी पाक-साफ़


एक बार फिर ऐसे विषय पर लिख रहा हूँ जिसे 'हार्ड-न्यूज़' की श्रेणी में नहीं रखा गया है, ये पत्रकारिता की शैली है, जो ख़बरों को प्रकृति के आधार पर विभक्त करती है | अब मुख्य बात , पिछले कुछ दिनों से 'तमाशाई क्रिकेट' , जिसे आप लोग आई.पी.एल. के नाम से जानते हैं, उसमें कुछ ऐसी उथल-पुथल चल रही हैं की, संसद तक में हंगामा हैं, अब बात संसद तक पहुँच गयी है तो, मुद्दे में भी कोई बात होगी, यही खोजते हुए कुछ दिलचस्प बातें सामने आयीं| पहले तो धन्य हो बी.सी.सी.आई. जो ४ साल की कुम्भकर्णी नीन्द के बाद जागी और उससे भी धन्य हमारी सरकार, जिसकी नाक के ठीक नीचे इतना बड़ा घोटाला चल रहा था जो उसे ही चूना लगा रहा था | क्रिकेट की क्रांति की संज्ञा पा चुका आई.पी.एल. पिछले ३ साल से चल रहा है, ललित मोदी के सानिध्य में इस लीग ने पूरे क्रिकेट-जगत में छाप छोड़ी , लेकिन इस चकाचौंध में कुछ ऐसा गोरखधंधा चल रहा है, किसी को भी मालूम न था | कहीं पर पैंसों का घपला तो कहीं टैक्स चोरी की शिकायतें , आजकल यह कुछ इन्ही वजह से सुर्ख़ियों में है | मोदी की महत्वाकांक्षी सोच का नतीजा आई.पी.एल. आज उन्ही की गलत व्यवस्थता के कारण संकट में है आखिर ये बात सामने कैसे आई, ये भी बड़ा दिलचस्प वाकया है, दरअसल लीग के अगले सत्र के लिए दो नयी टीमों , कोच्ची और पुणे का एलान किया गया, जिसमें कोच्ची टीम के खरीददारों की सूची सुनंदा नाम की महिला का नाम आया, जिन्हें कथित तौर पर केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर की महिला-मित्र बताया गया और कहा गया की सुनंदा ने थरूर की ओर से बोली लगायी, अब यहाँ से शुरू हुआ विवाद पहले तो थरूर को ले उड़ा, जिन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा,और अब इसने ललित मोदी को अपना शिकार बनाया | कहा जा रहा है की इसमें इतना गड़बड़झाला है जिसे सुलझाने में समय लगेगा | इसकी जांच में पूरा आयकर विभाग लग गया है, जब से जांच शुरू हुई है, दिन-ब-दिन नई-नई परतें खुलती जा रही हैं, कभी टीमों की बोली की प्रक्रिया पर सवाल उठाये जा रहे हैं तो कभी इसमें हो रहे खर्चो की पूरी जानकारी संदेह के घेरे में आ रही है | जो विवाद खुद मोदी के ही बयां से शुरू हुआ था आज वही ललित मोदी के आई.पी.एल. आयुक्त के पद से निष्काशन का कारन भी बन गया, न मोदी थरूर को लेकर बयां देते और न ही उलटे लपेटे में आते | शायद मोदी की ही वजह से इन घोटालों पर जांच का ख्याल सरकार के भी दिमाग में आया, लेकिन मुझे एक बात अभी तक समझ नहीं आई की क्या ये सब अकेले मोदी का ही किया धरा है, या फिर उन्हें सिर्फ बलि का बकरा बनाया जा रहा है, जो भी हो लेकिन शक के घेरे में तो बी.सी.सी.आई. के और भी अधिकारी आने चाहिए थे, एक अकेला आदमी इतने बड़े उलटफेर कर रहा है और किसी को कानोंकान खबर तक नहीं, पचा पाना जरा मुश्किल है | बातें तो कई निकल कर आ रही हैं , जो कहती हैं राजस्थान रोयल्स पर शिल्पा शेट्ठी का कोई मालिकाना हक नहीं है और इसमें मोदी के ही कुछ रिश्तेदारों ने निवेश किया है, लेकिन ये बात ३ साल बाद सामने आई है और वो भी तब जब सारी उंगलियाँ मोदी के ही खिलाफ हैं |पूरे विवाद में मोदी एक अकेला शक्स दिख रहा है जिसने सारे बुरे काम किया हैं बाकी तो दरोगा की तरह खड़े हैं और खुद को पाक-साफ़ बता रहे हैं | मुद्दे में बढती गर्मी के चलते मोदी को तो आखरी गेंद पर आउट कर चिरायु अमीन को क्रीज़ पर उतार दिया गया है, शायद ये इस गर्मी में कुछ राहत दे लेकिन सवाल तो अभी भी बाकि हैं क्या सिर्फ मोदी ?

Thursday, April 1, 2010

भागो ! बच्चन न आ जाये


फिल्मों के खलनायक भी शायद ही कभी अमिताभ बच्चन से इतने दूर भागते दिखें हो, जितना आज देश की एक शीर्ष राजनितिक पार्टी के लोग उनसे बचते नज़र आ रहे हैं |कांग्रेस का हर कोई नेता उनसे दूर रहने की कोशिश कर रहा है, हाल ही में ये सिलसिला शुरू हुआ मुंबई में सी-लिंक के आठ लेन का बनने पर आयोजित हुए कार्यक्रम में अमिताभ के विशिष्ट अतिथि बनकर आने से, जहाँ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी मौजूद थे, अब न जाने क्या हुआ की कांग्रेस को अमिताभ की मौजूदगी बिलकुल रास नहीं आई, और एक विवाद शुरू हो गया | जानकार अमिताभ का गुजरात का ब्रांड-एम्बेसडर बनना और नरेन्द्र मोदी के साथ एक ही मंच पर खड़ा होना , इस भेदभाव का कारण मान रहे हैं और इसके ऊपर गाँधी-बच्चन परिवार का विवाद तो जग-जाहिर है | लेकिन जिस तरह से बार बार अमिताभ जैसी हस्ती का तिरस्कार हो रहा है, इससे उनके चाहने वाले भी आह़त है | पुणे में मराठी साहित्य मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम के अनुसार अशोक चव्हाण और अमिताभ को एक ही मंच पर शामिल होना था लेकिन फिर खबर आई की चव्हाण अमिताभ से एक दिन पहले ही कार्यक्रम में शामिल होंगे, कभी जयराम रमेश, अमिताभ की मौजूदगी के चलते कार्क्रम में शामिल नहीं होते तो कभी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, अमिताभ के बेटे अभिषेक बच्चन को दरकिनार कर कार्यक्रम में शामिल ही नहीं करते हैं | यह सूची दिन-ब-दिन बढती जा रही है, और अब तो दोनों और से बयानों की बौछार हो रही है, लेकिन इस विवाद का अंत कब और किस रूप में होगा, किसी को नहीं पता, आखिर कब तक कांग्रेसी बच्चन से दूर हटते रहेंगे| अमिताभ इस व्यव्हार को समझ से परे बता रहे हैं तो कांग्रेस अमिताभ का दंगों के आरोपी नरेन्द्र मोदी के साथ अमिताभ के संबंधों को कारणों की श्रृंखला में जोड़ रही है |मोदी भी अमिताभ के बचाव में कांग्रेस पर वर कर रहे हैं तो भाजपा भी इस मौके पर अपनी सियासी रोटियां सेकने का मौका नहीं गँवा रही है |यह विवाद जिस तरह से सियासी रंग में रंगता जा रहा है, कांग्रेस और भाजपा दोनों फिर आमने सामने खड़े हो गए हैं और मुख्य मुद्दों को छोड़ इस पर फंस गए है | उम्मीद तो यही है की कांग्रेसियों का अमिताभ के प्रति यह रवय्या बदले और जो वो उनसे भागते दिख रहे हैं फिर से उनके करीब आ जायें |

अब न रोको हमको, स्कूल चले हम


मुफ्त में गरीब बच्चों को सलाह बहुत दी हैं की पढाई कर लो , कुछ बन जाओगे, पर खुद उनके लिए कुछ किया नहीं, अब इस मुफ्त की सलाह की भी ज़रुरत नहीं है, मुफ्त में शिक्षा जो बंटने लगी है आज से , आज़ादी के बाद बने भारतीय संविधान ने भारत के नागरिकों को जो अधिकार प्रदान किये थे उनमे और बढ़ोतरी हो गयी है, पहले मतदान का अधिकार, फिर सूचना का अधिकार और अब जाकर शिक्षा का अधिकार भी शामिल हो गया है | न जाने कितने बच्चों को अपनी गरीबी के चलते कभी स्कूल का मुंह तक देखना नसीब न हो पाया, न जाने कितने ही सपने गरीबी के बोझ में दफन हो गए लेकिन सरकार ने अब कुछ ऐसी कोशिश की है की ऐसे बच्चों के सपनों को पर मिल सकें और वो भी देश की मुख्य धारा से जुड़ सकें |संसद में पिछले साल ही पास हो चुके 'शिक्षा का अधिकार अधिनियम' तय समय यानि १ अप्रैल २०१० से पूरे देश में लागू हो गया, इसकी औचारिक घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सभी से सहयोग की अपील की है | इस कानून के अनुसार देश में ६से १४ वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य रूप से शिखा प्रदान की जाएगी,कानून कहता है की कोई भी बच्चा अपने पड़ोस के किसी भी स्कूल में किसी भी समय दाखिला ले सकता है, और स्कूल को उसे दाखिला देना होगा | इस अधिनियम का मूल उद्देश्य देश के प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना है, जिसमे प्रत्येक बच्चा कम-से-कम आठवीं तक पद सके | इस पर होने वाले खर्च को भी केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर उठाएंगी , जिसमे केंद्र सरकार ५५ फ़ीसदी और राज्य सरकार ४५ फ़ीसदी खर्च का जिम्मा लेंगी | आंकड़े बताते हैं की इस कानून से देश के लगभग ८ करोड़ बच्चे लाभान्वित होंगे , सरकार की कोशिश तो काबिल-ऐ-तारीफ है लेकिन इस की सफलता की जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिक पर है, कोशिश हो की यह सन्देश प्रत्येक घर तक पहुंचे और हर बच्चा कम-से-कम इतनी तालीम तो हासिल कर सके की अच्छे और बुरे में फर्क जान सके| प्रधानमंत्री ने अपने सन्देश में कहा की बच्चे देश का भविष्य हैं और उज्वल भारत के लिए इनका विकास , इनकी शिक्षा बहुत जरूरी है | कानून कितना सफल हो पायेगा ये तो भविष्य की गर्त में छुपा है, लेकिन इतना तो साफ़ है की इसको सफल बनाने के लिए हर देशवासी को आगे आना होगा और स्कूल की ओर बाद चले क़दमों को मंजिल तक पहुँचाने में मदद करें |

Sunday, March 7, 2010

मैंने हॉकी का जनाज़ा निकलता देखा..


मैंने बढ़ी कोशिश की की सिर्फ संजीदा मसलों पर ही अपनी राय रखूंगा, लेकिन क्या करूँ आज में खुद को नहीं रोक पाया, विषय जो इतना संजीदा हो चुका था | बात मेरे राष्ट्रीय खेल की है, जो आई.सी.यू.में भर्ती है और जिसे अब सिर्फ दुआएं ही बचा सकती हैं |
किताबें पढ़नी शुरू की तो मालूम पड़ा हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है, वरना में तो क्रिकेट को ही सब कुछ समझ बैठा था, भला मालूम भी कैसे होता, हॉकी का शानदार दौर तो जा चूका था और क्रिकेट अपना जादू चला रहा था | कभी-कभी में सोच में रहता था की आखिर हॉकी ने ऐसा क्या किया जो इसे राष्ट्रीय खेल बना दिया गया, आखिरकार मैंने इतिहास को खंगालने की कोशिश की, और जो मुझे मालूम पड़ा उसने मुझे और ज्यादा दुखी कर दिया, दुखी होता भी क्यों न, इतिहास ने मुझे एक जादूगर से जो मिलाया , सब उसे ध्यानचंद कहते थे, और वो भारत के लिए हॉकी खेलता था, उसी का करिश्मा था की भारत १९२८ से लेकर १९५६ तक लगातार ६ ओलंपिक स्वर्ण कब्जाने में सफल रहा, आलम कुछ यूँ था की इस दर्मियान भारत ने विरोधियों पर १७८ गोल दागे और उन्हें सिर्फ ७ बार गेंद को अपने पाले में डालने दिया | इस बात पर संदेह न करें ये पूरी तरह से सत्य तथ्य हैं |
अब इतिहास से आज में आते हैं, आंकड़े लगभग बदल चुके हैं, पिछले कुछ वर्षों में हालात कुछ यूँ बिगड़े की जिस ओलंपिक में भारत की टूटी बोलती थी, वो खुद को उसे खेलने लायक ही नहीं बता सका, इस वर्ष विश्व कप भारत में चल रहा है, और सिर्फ यही एक कारण है, की भारत इसका एक हिस्सा है, हैरानी हुई न ये जानकार, लेकिन क्या करें सच्चाई ही ये है,आलम कुछ यूँ हैं की खिलाडियों को अपना मेहनताना लेने के लिए हड़ताल करनी पड़ती है, और फिल्मी सितारों को हॉकी देखने के लिए अपील करनी पड़ती है , कहते हैं 'दिल दो हॉकी को', लेकिन ऐसी नौबत क्यों आई, ये जानने जब में बैठा तो हॉकी हुक्मरानों को कोसने के अलावा कुछ और नहीं कर पाया, अपनी गलतियाँ भी नहीं छुपा पाया, की काश कभी हमने इस पर बात की होती |
जो हुआ उसे भुलाना तो मुश्किल है लेकिन आगे बदने के लिए उसे भुला होगा और हमें हॉकी को जिन्दगी देनी होगी, क्या पता कोई और ध्यानचंद आ जाये इसका बेडा पार लगाने |

Saturday, January 23, 2010

खुद की गारंटी तो है नहीं, तुम्हारी कहाँ से दें


दो ही दिन तो हुए थे जब भारत सरकार द्वारा रचित शब्दकोष के तीखे तीर , अमेरिकी रक्षामंत्री राबर्ट गेट्स की जुबां से पकिस्तान पर 'ड्रोन' की भांति गिरे थे ,उन्होंने कहा, "भारत के सब्र की भी सीमा है, और यदि २६/११ जैसा हमला दोहराने का प्रयास हुआ तो फिर भूल जायें की भारत फिर शालीन व्यवहार करेगा |"
ये बयान देकर गेट्स साहब पाकिस्तान चले गए, अब इस बयान पर पाकिस्तान की और से प्रतिक्रिया भी लाज़मी थी, सो गिलानी साहब, बोल बैठे की जब खुद रोज़ ही आतंक की मार झेल रहे हैं और अपने नागरिकों को ही नहीं बचा पा रहे हैं तो कैसे इस बात की गारंटी दे दें की भारत में २६/११ नहीं दोहराया जा सकता |
अब में इस बयान का पोस्टमार्टम करने बैठा तो पहले हंस पड़ा लेकिन फिर मामले की गंभीरता को देखते हुए चीर-फाड़ शुरू की, सोचने लगा ऐसा क्या सूझा पाक-प्रधानमंत्री को , जो इस तरह का बयान सार्वजनिक कर दिया, कहीं ये भारत के लिए इशारा तो नहीं था की हम तो हाथ खड़े कर चुके, अपनी सुरक्षा स्वयं करें, हमसे अब और न होगा, और न ही उम्मीद करें |
गिलानी के इस बयान की मंशा जो भी रही हो लेकिन एक बात तो साफ़ है की इस तरह के बयान से पाकिस्तान अपनी झुंझलाहट ही दिखा रहा है, और सांत्वना की आड़ में मुद्दे से विचलित करने का प्रयास कर रहा है, वरना आई.पी .एल के मुद्दे पर इतनी नौटंकी की कोई आवश्यकता ही नहीं थी,
ये जानते हुए भी आईपीएल एक निजी कार्यक्रम है और सरकार की इसमें हिस्सेदारी नहीं है, इसके बावजूद भी इसे तूल दिया गया और संबंधों को सुधारने की बजाय और अधिक ख़राब करने की कोशिश की गयी , वरना, पाकिस्तान में भारतीय चैनलों को बंद करने की बात और आईपीएल को 'ब्लैक-आउट' नहीं किया जाता |
एक गलत बयान और संबंधों में और खटास, इतना जानने के बाद भी इस तरह के असंगत एवं असंवेदी बयान देना कहाँ तक ठीक है, ये तो उन्हें भी पता होगा,
कहीं ऐसा न हो की 'अमन की आशा' ऐसे बयानों की भेंट चढ़ जाय , इसलिए जरा 'तोल-मोल के बोल'

Friday, January 8, 2010

तो इसे राजनीति कहते हैं!!


झारखण्ड विधान-सभा चुनाव के परिणामों के दिन मै एक भूल कर बैठा, मै वास्तविकता से अधिक सामना कर चुके अपने एक मित्र से शर्त लगा बैठा की झारखण्ड मै सिबू सोरेन और कांग्रेस ही सरकार बनायेंगे, भाजपा का कोई 'चांस' नहीं, लेकिन हाय रे नियति तुझे कुछ और ही मंज़ूर था , सिबू सोरेन की पंचर गाडी को भाजपा ने कुछ यूँ लिफ्ट कराया की 'गुरूजी' को सीधे गद्दी पर ही बिठा कर छोड़ा, और मुझे शर्त गंवानी पड़ी मै शर्त तो हारा पर एक बात अच्छी तरह से समझ गया कि राजनीति की गणित जितनी आसान बाहर से नज़र आती है, अन्दर से उतनी ही उलझी हुई है, यहाँ पर मुंबई जानेवाली ट्रेन बिना बताये दिल्ली पहुँच सकती है एक बात और समझा कि 'डेटोल' और 'टाइड' कितना भी दावा कर लें कि वो हर दाग आसानी से मिटा सकते हैं , पर जो बात 'समर्थन के साबुन' में है वो इनमें कहाँ , दाग कुछ यूँ मिटाता है की दाग ढूंढते रह जाओगे बड़ी घुमाफिर कर बात कर ली अब सीधी बात, झारखंड में मुख्यमंत्री बने सिबू सोरेन जिस भाजपा को कल तक दागी और भ्रष्ट नज़र आते थे आज उसी भारतीय जनता पार्टी के समर्थन की बदौलत गुरूजी राज्य के मुख्यमंत्री बन बैठे हैं, बात बस इतनी सी थी की तब वो विपक्ष में थे आज सत्ता का चक्कर है चुनाव परिणामों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला जिस कारण १८ सीटें कब्जाने वाले गुरूजी को सीधी सौदेबाज़ी सूझी और फ़ेंक दिया एक दांव की जो मुझे मुख्यमंत्री बनाएगा उसे ही समर्थन मिलेगा , कांग्रेस को ये चाल रास नहीं आई, पर भाजपा ने मौके को लपका और कूद पड़े सत्ता में, ये भी न सोचा की वो उस व्यक्ति को व्यक्ति को समर्थन दे रहे हैं जिस पर हत्या जैसे मामले चल रहे हैं और झारखण्ड की जनता उन्हें एक बार पहले अपनी सीट से हटा भी चुकी है इस घटना ने दिखा दिया कि राजनीति किस कदर नए-नए मोड़ लेती है, ये देखने को मिला, यहाँ कोई अछूत नहीं , ये भी देखने को मिला और ये भी दिखा की राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं

Friday, December 25, 2009

ये आग किसने लगाई...

सबको अलग राज्य चाहिए, मानो राज्य न होकर पिज्जा और बर्गर हो गया, की आर्डर दिया और तुरंत पाया मुझे तो ऐसा ही नज़र आ रहा है, स्कूल में पड़ा था की 'अनेकता में एकता भारत की विशेषता', आज तक इस विरोधाभास को सत्य मानता था लेकिन अब कुछ स्वार्थियों की कुमंषा इसको परिवर्तित करने के विचार में है


चंद्रशेखर राव को तेलंगाना चाहिए, तो मायावती उत्तरप्रदेश के और टुकड़े करवाना चाहती है, मध्यप्रदेश महाकौशल मांग रहा है तो विदर्भ और गोरखालैंड की भी 'फुल-डिमांड' है कहीं भूख हड़ताल चल रही है तो कहीं कर्फ्यू लगा है और तोड़फोड़ चल रही है, हालात कुछ यूँ हैं की हर एक बयान पर प्रतिकियाएं आ रही हैं


मुख्यरूप से जो मांग परेशानी का सबब बनी हुई है वो आँध्रप्रदेश में तेलंगाना की है, तेलंगाना राष्ट्र समिति की अध्यक्ष चंद्रशेखर राव इसको लेकर आक्रामक रुख की बात कह रहे हैं जबकि केंद्र अपने बयानों पर लगातार पलती मार रहा है , हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं की राष्ट्रपति शाशन तक की बात हो रही है ,क्योंकि आन्ध्र प्रदेश विधानसभा के १०० से अधिक विधायक अपने इस्तीफे सौंप चुके हैं

और इस पूरे राजनीतिक धारावाहिक में बिना वजह पिसते जा रहे हैं आम लोग
संविधान भाषा के आधार पर राज्य-विभाजन की बात तो कहता है लेकिन ये तो हमें सोचना होगा की इसकी सीमा क्या हो,कब तक देश को टुकड़ों -टुकड़ों में बांटते रहेंगे, और कब तक अपनी मांगे मनवाने के लिए असामाजिक कृत्यों का सहारा लेते रहेंगे